हिमालय की गोद में जागी विदेशी योगिनियों की दिव्य चेतना
मनुष्य के सुख का चरम तब मोहभंग करता है जब वो दर्द देने लगता है। भोग-विलास की संस्कृति एक सीमा तक तो सुख देती है लेकिन कालांतर जीवन की विसंगतियां व्यक्ति में शून्य भरने लगती हैं। यही वजह है कि धनी व विकसित देशों की सैकड़ों योग साधिकाएं योग व आध्यात्मिक साधना से सुकून की तलाश में भारत चली आती हैं।
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Sanjay Purohit
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आज की उपभोक्ता संस्कृति के चरम पर शायद ही कोई भारतीय सैर-सपाटे और भौतिक सुख के लिये विदेश जाने की हसरत न रखता हो। वह बात अलग है कि उसकी जेब इजाजत दे या नहीं। ऐसे दौर में विडंबना देखिए कि जब लाखों भारतीयों के लिये पश्चिमी भोग संस्कृति के सम्मोहन और मौज-मस्ती के लिये विदेश जाना जुनून बना हुआ है, सैकड़ों विदेशी शांति-सुकून व आध्यात्मिक ज्ञान के लिये भारत का रुख कर रहे हैं। जिन पश्चिमी जीवन मूल्यों को आज भारतीय सुख के मानक मानकर अपनाने की होड़ में शामिल हैं, उससे उपजे मनोकायिक रोगों से मुक्ति के लिये विदेशी योगी-योगनियां हिमालय की शरण में आ रहे हैं। वे विदेशी अपने जीवन में कामयाब हैं। उनके पास संसाधनों व पैसे की कमी नहीं है। दरअसल, ये अमीर व विकसित देशों के लोग मशीनी होती जिंदगी की ऊब से मुक्त होने के लिये भारत आते हैं। उत्तराखंड की योग नगरी ऋषिकेश तथा अन्य हिमालयी राज्यों के रमणीक स्थल इन विदेशियों की प्राथमिकता बने हुए हैं। पेशेवर हिसाब से देखें तो इन साधकों की विविधता समृद्ध थी। इनमे, डॉक्टर, वैज्ञानिक, शिक्षाविद , हीलर्स, आध्यात्मिक अभ्यासकर्ता, उद्यमी और विभिन्न क्षेत्रों में विशिष्ट पहचान रखने वाले साधक शामिल थे। वे सभी एक ही उद्देश्य से जुटे थे, हिमालयीय आध्यात्मिक ज्ञान को साक्षात अनुभव करना।

योग की वैश्विक स्वीकार्यता

निश्चित रूप से, यह योग की ताकत ही है दुनिया की अलग-अलग शासन व्यवस्थाओं, विभिन्न महाद्वीपों, संस्कृतियों व धर्मों से जुड़े लोग यहां श्रद्धा भाव से योगिक क्रियाओं को संपन्न करते हैं। उनके लिये योग व ध्यान की समृद्ध परंपराएं धार्मिक विश्वासों में बाधक नहीं हैं। इसे तो योग की वैश्विक सर्वस्वीकार्यता ही कहा जाएगा कि इन युवा योग साधकों को योग की जननी भारत की धरती सम्मोहित करती है। वहीं दूसरी ओर विदेशी साधकों की उपस्थिति से ये योग उत्सव एक अद्भुत सांस्कृतिक मेला नजर आता है। इस विशिष्ट योग उत्सव में भाग लेने वालों में विदेशी कॉरपोरेट जगत के बड़े अधिकारी शामिल रहे, जो समृद्धि हासिल करने के बाद अपने भीतर की समृद्धि की तलाश में हिमालय के आंचल में आए हैं। उनमें नवविवाहित युगल, भरे-पूरे परिवार, प्रेमी युगल, विवाह को तिलांजलि देकर आई आत्मनिर्भर युवतियां और कुछ उम्रदराज महिलाएं भी शामिल रहीं।

हिमालयीय ज्ञान-विज्ञान का अनुभव

सही मायनों में कई प्रतिभागियों के लिए यह रिट्रीट हिमालयीय ज्ञान-विज्ञानों से रूबरू होने का पहला अनुभव था। हिमालय में एक ऐसा पवित्र स्थान जहां प्राचीन योगिक ज्ञान, ऊर्जा प्रक्रियाएं और चेतनाधारित साधनाएं अपने शुद्धतम रूप में मानव कल्याण के लिये प्रवाहित होती रही हैं। निस्संदेह, दुनियाभर से आए योग साधकों की भागीदारी हिमालयीय परंपरा में बढ़ते वैश्विक विश्वास और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भागीदारी का प्रमाण है।

सिद्ध परंपरा की ध्यान तकनीके

दरअसल, इस बहु-स्तरीय हिमालयीय साधना में साधक प्रत्येक दिन शरीर, मन, ऊर्जा और चेतना के नए आयाम खोलने के प्रयास करते हैं। हिमालय सिद्ध अक्षर के मार्गदर्शन में प्रतिभागी प्राचीन तकनीकों और गहन रूपांतरकारी अनुभवों से गुजरते हैं। वे दिन की शुरूआत शास्त्रीय हिमालयी योग परंपरागत आसन- अभ्यास से करते हैं। फिर वे अपनी मुख्य नाड़ियों इड़ा,पिंगला और सुषुम्ना को सक्रिय करने हेतु श्वास तकनीकों का सहारा लेते हैं। वहीं मन-शरीर सक्रिय करने के लिये सूर्य साधना व पंचतत्व संयोजन का आश्रय लेते हैं। हिमालय की शांत वादियों में कुदरत के मौन के साथ गंगा तट पर ये साधनाएं पूरी की जाती हैं। दरअसल, ये साधक आंतरिक, बाह्य व अवचेतन की जागरूकता के लिये दुर्लभ हिमालयी अभ्यासों का सहारा लेते हैं। जिसमें श्वास नियमन से शरीर के ऊर्जा चैनलों को मजबूती दी जा सके। निस्संदेह, श्वास साधनाएं मनुष्य में जागरूकता, स्थिरता और अंतर्ज्ञान को परिष्कृत करती हैं। ध्यान साधना की ये तकनीकें आम से हटकर खास सिद्ध परंपरा की तकनीकें रही हैं। जिन्हें अब जन-जन तक पहुंचाने का ऋषिकर्म हिमालय सिद्ध द्वारा किया जा रहा है। देश-विदेश में इन प्रयासों का सकारात्मक प्रतिसाद भी मिल रहा है। दरअसल, ऐसे अभियानों के जरिये मानव ऊर्जा संरचना संवर्धन, योगिक चेतना में विस्तार, प्रकृति की कॉस्मिक ऊर्जा और उसके जीवन पर प्रभाव का मूल्यांकन किया जाता है। जिसके जरिये प्रतिभागी सीखते हैं कि ध्यान व श्वास क्रियाओं का अपने जीवन के निर्णयों और जीवन शुद्धि में कैसे उपयोग किया जाए। इसके साथ ही ध्यान एवं स्थिरता प्रशिक्षण के लिये त्राटक, पूर्णिमा व जल तत्वध्यान, मेरुदंड जागरण, उच्च आवृत्ति के साथ श्वास सामंजस्य, हिमालयी मौन साधन का सहारा लिया जाता है। लंबी साधना और सात्विक जीवन के अंगीकार के बाद ये अभ्यास साधक के लिये प्रखर बुद्धि व गहरी अंतर्दृष्टि के द्वार खोलते हैं।

आध्यात्मिक उन्नति में तन-मन का सुकून

योग को वैश्विक मान्यता मिलने के बाद दुनिया के लाखों साधक भारत आकर योग की जन्मभूमि के अहसास महसूस करना चाहते हैं। दरअसल, भौतिक सुखों की विसंगतियां इनको उपभोक्तावादी संस्कृति से विमुख कर रही हैं। वे सुकून की तलाश में योग की जन्मभूमि भारत के सात्विक सम्मोहन में बंधे चले आते हैं। फिर यह क्रम सालों साल चलता रहता है। उन्हें दुनिया की कोई भौगोलिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक व धार्मिक सीमाएं बांध नहीं पातीं। विडंबना यह है कि विदेशों में लोग जिस भौतिक संस्कृति का परित्याग करने को प्रयासरत हैं, भारत में उसका अनुकरण शान समझा जाता है। ऐसे में योग का सान्निध्य निस्संदेह,हमें सुखमय जीवन की राह दिखाता है।

हिमालयीय ज्ञान-विज्ञान का अनुभव

सही मायनों में कई प्रतिभागियों के लिए यह रिट्रीट हिमालयीय ज्ञान-विज्ञानों से रूबरू होने का पहला अनुभव था। हिमालय में एक ऐसा पवित्र स्थान जहां प्राचीन योगिक ज्ञान, ऊर्जा प्रक्रियाएं और चेतना धारित साधनाएं अपने शुद्धतम रूप में मानव कल्याण के लिये प्रवाहित होती रही हैं। निस्संदेह, दुनियाभर से आए योग साधकों की भागीदारी हिमालयीय परंपरा में बढ़ते वैश्विक विश्वास और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की भागीदारी का प्रमाण है।


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Sanjay Purohit
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